Friday, Oct 18, 2024
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बैसाखी पर चलते हुए दौड़ा रहे हैं रंगकर्म को..

कीर्ति राणा

इंदौर : करीब 25 साल पहले शिवाजी वाटिका के समीप हीरो होंडा पर जा रहे रंगकर्मी सुशील गोयल ट्रक की टक्कर में घायल हो गए थे।तब से शरीर का निचला हिस्सा निष्क्रिय है। शारीरिक पीड़ा के बाद भी नाटकों का जुनून यथावत है। खुद बैसाखी बिना चल नहीं सकते लेकिन ‘इंदौर थियेटर’ के माध्यम से रंगकर्म को दौड़ाने में लगे रहते हैं। क्रिकेट की तरह चार साल पहले नाट्य जुनून नाम से नाटकों का ट्वंटी-20 जारी किया जो बदस्तूर जारी है और इसकी सफलता का अंदाज ऐसे लगाया जा सकता है कि भोपाल सहित आसपास के शहरों की नाट्य संस्थाएं भी इसमें शामिल होने को आतुर रहती हैं।
रंगकर्म को लेकर पति के जुनून के चलते अर्चना गोयल प्रोफेसर वाली नौकरी छोड़ अब पूरी तरह से उनके रंग में ऐसी रंग गई हैं कि नाटकों से जुड़े हर काम में सत्तर प्रतिशत भागीदारी अर्चना की रहती है।बीते दिनों सम्पन्न हुए रंगकर्म और साहित्य की विभिन्न विधाओं वाले अभिनंदन कला कुम्भ में वे लगातार 13 घंटे संचालन भी कर चुकी हैं।

रंगकर्मियों की सक्रियता बनी रहे इसलिए इंदौर थियेटर के गठन में सुशील गोयल ने शहर की सभी नाट्य संस्थाओं को जोड़ लिया है। अध्यक्ष वे हैं तो उपाध्यक्ष उन्नति शर्मा (अदा ग्रुप), सचिव अनिल चाफेकर (अष्टरंग), संयुक्त सचिव राजन देशमुख (अविरत) हैं। अन्य संस्थाओं के प्रमुख कार्यकारिणी सदस्य हैं।इस तरह से सबको जोड़ने में लगातार दो साल तक बैठकों के दौर, शंका-कुशंका का समाधान करते बीत गए तब कहीं जाकर 18 साल पहले सामूहिक भागीदारी से इंदौर थियेटर का यह रूप सामने आया।संरक्षकों में भी आनंद मोहन माथुर, कवि सरोज कुमार, नरहरि पटेल, तपन मुखर्जी, अरुण डिके, राहत इंदौरी आदि शामिल हैं।सुशील कहते हैं जिस तरह से रंगकर्मी सक्रिय हैं शहर में कम से कम 10 ऑडिटोरियम शहर के विभिन्न हिस्सों में जरूरी हैं, इस दिशा में हम सब सक्रिय भी हैं।

ऐसे होता है ‘ट्वंटी-20 नाट्य जुनून’ ।

इंदौर थियेटर ने 4 साल पहले इंदौर की नाट्य संस्थाओं के लिए 10 मिनट की अवधि वाला नाटक प्रस्तुत करने वाले जिस समारोह की शुरुआत की उसे नाटकों का ट्वंटी-20 नाम दिया गया।वे नाटकों के विषय शहर के प्रबुद्धजनों द्वारा सुझाए गए मुद्दों पर तय करते हैं।एक दिन पहले ऐसे सारे विषयों की चिट तैयार की जाती है। जिस संस्था के हाथ जो चिट लगती है उसे उस विषय पर एक दिन बाद नाटक प्रस्तुत करना होता है। इस साल 13संस्थाओं ने भाग लिया। इन्हें भोजन के साथ ही मानदेय के रूप में एक हजार रु दिए जाते हैं।
इस आयोजन में नाटक प्रस्तुत करने वाले निर्देशक – रंगकर्मी चंद्रशेखर बिरथरे ने सुशील गोयल के समर्पण की सराहना की। उनकी पीड़ा यह भी थी कि कई नाटकों की प्रस्तुतियां नियत अवधि के बाहर थी और साथ ही कई रंग समूहों ने नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति यहां पर की, वह भी ऐसे नुक्कड़ नाटकों की जो उनके द्वारा नियमित रूप से खेले जाते रहे हैं,जो मैं समझता हूं आयोजन के औचित्य को खंडित करते हैं ।
एक विशेष बात और जिसकी तरफ में सभी रंग कर्मियों का ध्यान दिलाना चाहता हूं कि अपनी अपनी प्रस्तुति के बाद जिनको भोजन के पैकेट से प्राप्त हुए वह धीरे धीरे करके आयोजन स्थल से चले गए और फलस्वरूप दर्शकों की उपस्थिति कम होती गई और अन्तिम प्रस्तुति के समय तो दर्शकों की संख्या मात्र आठ से दस ही रह गई थी ।

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