Sunday, Oct 6, 2024
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क्या भारत में कोविड-19 के मौजूदा तेज उछाल के लिए ‘देसी’ कोरोना वायरस वैरीएंट जिम्मेदार?

नेशनल सेंटर फ़ॉर डिसीज कंट्रोल (NCDC)  की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नोवेल कोरोना वायरस का “नया डबल म्युटेंट वैरीएंट” पाया गया है. बड़ा सवाल ये है कि क्या इस वैरीएंट की वजह से ही भारत में कोविड-19 केसों की संख्या में इतना बड़ा उछाल देखा जा रहा है.   

इस वैरीएंट को ‘B.1.617’ का नाम दिया गया है. ये वैरीएंट अब तक आठ देशों में पाया जा चुका है. समझा जाता है कि इनमें म्युटेशन वाले करीब 70 फीसदी सैम्पल्स की उपज भारत में हुई है. विशेषज्ञ नए डबल म्यूटेंट स्ट्रेन को देसी (भारतीय) वैरीएंट बता रहे हैं. 

इससे पहले ‘E484Q’ और ‘L425R’ डबल म्युटेशन कर रहे थे जिससे कोरोना वायरस के अधिक संक्रामक वैरीएंट्स सामने आ रहे थे.

अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के निदेशक और वायरोलॉजिस्ट डॉ शहीद जमील कहते हैं, “एक और  म्यूटेंट है- E484K, इसी का हल्का वैरीएशन अब भारतीय वैरीएंट का हिस्सा है.  जिस डबल म्यूटेंट को लेकर भारत में बात हो रही है, वो ऐसा वैरीएंट हैं जिसमें 15 अलग अलग म्यूटेशंस हैं. स्पाइक प्रोटीन के रीजन में दो क्रिटिकल म्यूटेशंस पाए गए हैं. इनमें से एक म्यूटेशन कैलिफोर्निया में पाया गया, और इसीसे दक्षिण कैलिफोर्निया में वायरस का फैलाव बढ़ा, अगर ये वहां हो सकता है तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता.” डॉ जमील ने आगे कहा, “अगर आप इस वायरस की तुलना वुहान में सामने आए वायरस से करें (जो कि हमारा रेफरेंस स्ट्रेन है) तो करीब 15 बदलाव हो चुके हैं, जिसने सक्रियता के तौर पर वायरस को काफी कुछ बदल दिया है. इनमें तीन बदलाव स्पाइक प्रोटीन से जुड़े हैं. यही वो प्रोटीन है जो वायरस को इंसान की कोशिकाओं में दाखिल कराने के लिए जिम्मेदार है. साथ ही ये वो प्रोटीन है जिसके खिलाफ एंटीबाडीज वायरल संक्रमण से बचाव उपलब्ध कराती हैं. जब ये बदलाव होते हैं तो प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं. इन बदलावों से वायरस को मानव कोशिकाओं को और बेहतर ढंग से निशाना बनाने का मौका मिल जाता है और यह अधिक संक्रामक हो जाता है.” 

क्या हमने देसी वैरीएंट पर वैक्सीन्स को टेस्ट किया? 

कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों को ही यूके वैरीएंट पर टेस्ट किया गया. पाया गया कि दोनों वैक्सीन यूके वैरीएंट से बचाव देने में सक्षम हैं. हालांकि, प्रतिरोधक क्षमता वायरस के कुछ वैरीएंट्स से जुड़ी एक एंटीबॉडी के आधार पर काम नहीं करती.

डॉ शाहिद जमील कहते हैं, इम्युनिटी या प्रतिरोधक क्षमता वायरस की मल्टीपल साइड्स से जुड़े मल्टीपल एंटीबॉडीज के आधार पर काम करती है. इम्युनिटी T-सेल्स के आधार पर भी काम करती है जो वायरस संक्रमित कोशिकाओं को हटाती हैं. संक्रमण को लेकर लोगों में एक भ्रांति यह है कि कोई भी वैक्सीन संक्रमण के खिलाफ टेस्ट नहीं की गई. सभी वैक्सीन बीमारी के खिलाफ बचाव देती हैं.”

ILBS हॉस्पिटल के हेड और दिल्ली सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ एस के सरीन कहते हैं- “भारतीय स्ट्रेन जो है वो दक्षिण अफ्रीकी, यूके और ब्राजीलियन स्ट्रेन का एक तरह से हाइब्रिड है. हमें सिर्फ एक या दो स्ट्रेन मिले हैं जिन्हें हम डबल म्युटेंट्स कहते हैं; ऐसे सैकड़ों हो सकते हैं. कोविशील्ड (एस्ट्राजेनेका) वैक्सीन को जब साउथ अफ्रीकी वैरीएंट पर ट्राई किया गया तो ये पानी से बेहतर नहीं थी.”

डॉ जमील कहते हैं, “हर राज्य में हमने कुछ स्प्रेडर इवेंट्स को देखा. ये सवाल भी उठता है- 2020 में बिहार क्यों नहीं? क्योंकि वायरस ने इस हद तक म्युटेट नहीं किया था. यूके वैरीएंट इम्युनिटी पर आक्रमण अधिक तीव्रता से करता है. ये ट्रांसमिट भी अधिक करता है. ये पंजाब में मौजूद है. ये दिल्ली में भी तेजी से फैल रहा है.” एपिडिमियोलॉजिस्ट्स का कहना है कि काफी म्युटेशन्स हो रहे हैं. लाइफकोर्स एपिडमियोलॉजी, PHFI के प्रोफेसर और हेड डॉ गिरिधर कहते हैं, “हमने इस बुलेट को पूरी तरह नहीं समझा है. विदेशी वैरीएंट्स की तुलना में हम इन घरेलू वैरीएंट्स की हद को नहीं जानते.”

क्या म्युटेशन्स वैक्सीन्स से बच निकल रहे हैं? 

भारत में ऐसी स्टडीज हो रही है जिससे पता लगाया जा सके कि क्या देसी वैरीएंट वैक्सीन्स से बच निकल रहे हैं. इन स्टडीज के नतीजे अगले दो हफ्ते में उपलब्ध हो सकते हैं. 

सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) के निदेशक डॉ राकेश के मिश्रा कहते हैं, “वायरस का म्यूटेट करना जारी रह सकता है और इससे नए वैरीएंट्स पैदा हो सकते हैं. एक वैरीएंट जिसमें अपना वजूद बचाए रखने की कुछ ज्यादा क्षमता होती है. फिर वायरस दूसरे वायरस की जगह ले लेता है. यह सामान्य प्रक्रिया है.” 

डॉ राकेश मिश्रा के मुताबिक CCMB की ओर से इन विट्रो न्यूट्रिलाइजेशन एस्से का इस्तेमाल कर स्टडीज की जा रही है.

डॉ मिश्रा ने इंडिया टुडे को बताया, हमने लैब्स में वायरस के नए वैरीएंट्स को कल्चर करना शुरू किया है. ये कल्चर्ड वायरस जो लोग रिकवर्ड हो चुके हैं, उनसे लिए गए सीरम के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे. जिन्हें वैक्सीन के दो शॉट्स लग चुके हैं, उनके सीरम के लिए भी इस्तेमाल होंगे. इससे हमें पता चलेगा कि पहले वाले संक्रमण से पैदा हुई इम्युनिटी क्या नए वैरीएंट्स के खिलाफ भी उतनी ही कारगर है.”

क्या नए डबल म्युटेंट वैरीएंट में वैक्सीन से बचने की क्षमता है, इस सवाल के जवाब में डॉ मिश्रा ने कहा, हम नहीं जानते, शायद नहीं. लेकिन भविष्य में हम गारंटी नहीं दे सकते कि नए वैरीएंट्स इस संदर्भ में अधिक परेशानी देने वाले नहीं होंगे.”

 

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