? जागो पालक जागो?। । स्कूल फीस के मुद्दे पर माननीय हाईकोर्ट द्वारा जो फैसला सुनाया गया है उसके बारे में यह समझना आवश्यक है कि पहले कोर्ट में कौन गया था और केस मूलतः क्या था, लॉकडाउन के बाद में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा यह आदेश स्कूलों को दिया गया की वह सिर्फ ट्यूशन फीस ले सकेंगे उसके अलावा एनुअल चार्जेस, लाइब्रेरी फीस ,एक्टिविटी फीस, स्पोर्ट्स फीस, कंप्यूटर फीस, कल्चरल फीस ,एनुअल फीस, स्टेशनरी चार्ज, अपग्रेडेशन फीस, एग्जाम फीस , स्कूल बिल्डिंग डेवलेपमेंट , क्लास रूम मेंटेनेंस, एनुअल फंक्शन चार्जेस, डायरी और आईडी कार्ड एक्सपेंस आदि जैसे किसी भी प्रकार की एक्सपेंस स्कूल नहीं ले सकेंगे । स्कूल संचालकों की संस्था का कहना था कि हम सीबीएसई यानी सेंट्रल बोर्ड के अधीन हैं और मध्य प्रदेश सरकार हमें इस प्रकार का आदेश नहीं दे सकती। हमें “पूरी फीस” लेने का अधिकार है और इस “पूरी फीस” के चक्कर में वे मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की शरण में गए। हम जागृत पालक संघ के रूप में केस में इंटर्वहीनर थे मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने तमाम पक्षों को सुनने के बाद यह निर्णय दिया है कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया सिर्फ ट्यूशन फीस लेने का आदेश सही था और ट्यूशन फीस के अतिरिक्त स्कूल कुछ भी नहीं ले सकेंगे । इस तरह स्कूल हाईकोर्ट में मध्य प्रदेश सरकार से हार गए और सिर्फ ट्यूशन फीस तक ही उनकी सीमा रह गई । अब यह अलग विषय है कि अधिकतर स्कूलों ने अपनी अधिकतर फीस ट्यूशन फीस के नाम से ही रखी हुई है। यह भ्रम जो स्कूलों और उनकी संस्था द्वारा फैलाया गया है कि कोर्ट ने उन्हें ट्यूशन फीस देने का अधिकार दिया है इस तरह प्रचारित किया जा रहा है जैसे वह कोई जंग जीत कर आए हैं, जबकि सच्चाई यह है कि वह इस केस को हार चुके हैं, अब ट्यूशन फीस क्या होगी यह हमें स्कूल वालों से बातचीत करके तय करना है, जो आपका अधिकार है जैसी शिक्षा वैसी फीस के फार्मूले के आधार पर,
जी हां….. सरकार या कोर्ट ने कभी भी यह नहीं कहा कि ट्यूशन फीस कितनी होनी चाहिए और इसे कौन तय करेगा ।
तो अब बारी है हमारी….
पहला कदम हमें संगठित होना है, चाहे कोई फीस भर चुका हो, तो भी उसे अपने संगठन में साथी बनाना है, ग्रुप का हिस्सा बनाना है,
दूसरा कदम एक प्लेटफार्म पर सभी पालकों के विचारों को लाकर स्कूल वालों के टॉप मैनेजमेंट से चर्चा करनी है और अपनी बातें स्वीकृत करवानी हैं।
उनसे पिछले वर्ष की संपूर्ण बैलेंस शीट और इस वर्ष अभी तक हुए खर्चों का हिसाब मांगना है जो आपका अधिकार है। और एक संस्था की तरह उन्हें भी पारदर्शिता रखनी होगी यह उनकी जिम्मेदारी है। क्योंकि स्कूल संस्था चलाती है कोई व्यक्ति नहीं।
यह बात उन्हें स्पष्ट करना है कि कोर्ट ने ट्यूशन फीस कितनी हो और कौन तय करेगा इस बारे में कोई आदेश नहीं दिया है।
इस प्रकार हम निश्चित तौर से सफलता को प्राप्त कर सकते हैं और इस विपरीत परिस्थिति के समय में राहत पा सकते हैं।
हमारा संगठन सदैव आपके सहयोग में तत्पर है।? परंतु शुरुआत सदैव आपको करनी होगी।
जागृत पालक संघ, म. प्र.