जिन बच्चों के स्कूल नहीं खुल रहे हैं उनकी प्रगतिशील एक्टिविटी पर पेरेंट्स विचार करें। घर में खाली रहने से बच्चों के मानसिक व शारीरिक विकास पुरा नही होता है। बच्चों को प्राइवेट नहीं तो घर से कैसे कोचिंग मिल सके इस पर ध्यान दें। स्कूल भले फिस ले रहे हो पर वह पढ़ाई नहीं हो पाती अतः यह चिंता पेरेंट्स की होना चाहिए कितना समय बच्चों को घर में कोचिंग के लिए निकालते हैं। और बच्चे की क्वालिटी को निखारने का प्रयास करें। बच्चों में क्या-क्या नया सीखा, स्पोर्ट में कितनी रुचि रखी, इन सब बातों पर पेरेंट्स को क्या क्या ध्यान रखना था और पेरेंट्स क्या ध्यान रखा। यह भी है मनन करें कि इतने महीनों से बच्चे जब घर पर थे तो उन्होंने क्या-क्या सीखा और यदि नहीं सीखा तो उसके जिम्मेदार कौन है। खेल, शिक्षा, ज्ञान, पढ़ाई, लिखाई, हैंडीक्राफ्ट, कला, म्यूजिक, स्पोर्ट, विज्ञान और नैतिक शिक्षा में बच्चा किस स्तर पर है यह पेरेंट्स की जिम्मेदारी है। बच्चों को खाली मोबाइल खिलौने या साइकिल स्कूटर दिलाने से ही आप जिम्मेदारी से फारिक नहीं होते हैं। माता या पिता किसी एक ने बच्चों को पूरा समय देना चाहिए उसके मन को समझना चाहिए और यदि मन हवा में दौड़ता है तो उसे यह बताना चाहिए कि बेटा हम किस परिवेश में हैं किस माहौल में है उस अनुसार हम कैसे आगे बढ़े। जो स्कूल फीस ले रहे हैं वह अपने नैतिक जिम्मेदारी समझकर इन बच्चों को पूरे स्कूल समय चार-पांच घंटे ऑनलाइन हर विषय पर शिक्षा दें। जब फीस पूरी तो ऑनलाइन शिक्षा भी पूरे समय। वरना पार्ट टाइम शिक्षा की फीस लो।
अशोक मेहता, वास्तु एवं पर्यावरणविद् , इंदौर