Friday, Oct 18, 2024
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सब्कों सब की छूट होना चाहिए।


जब अहातों में 500 हो सकते हैं तो शादी में 250 क्यों?
जब शादी में 250 हो सकते हैं तो बारात में 50 क्यों?
जब बारात में 50 हो सकते हैं तो दुकान पर 5 भी क्यों नहीं?
किसी नियम का कोई लॉजिक तो हो। बस, पहले (चुनाव) सत्ता की चांदी, अब “धीश” की।
 
पहले 5000 सेंपल पर 500 पॉजिटिव थे फिर 1000 सेंपल किए 100 हो गए।  अब फिर 5000 किए तो 500 हो गए। मतलब *मेरी मर्जी*

*बोल वचन*
1) लोग शादी में मॉस्क लगा कर खाना नहीं खाते इसलिए कोरोना बढा। भाई, चुनाव में ये उच्च स्तरीय सोच कहां थी। चलिये एक डेमो दिखा तो मॉस्क लगा कर खाना खाने का।

2) सरकार को पैसे की जरूरत है इसलिए शराब दुकान 11 बजे ओपन रहेंगी। तो क्या भेल, खोमचे,  बेन्जो, पानी पूरी, किराना,  दूध-जलेबी, कपडा, इलेक्ट्रिक और अन्य तमाम दुकान वालों को पैसो की जरूरत नहीं है? *टेक्स तो वे भी शराब वालों से अधिक ही भरते हैं। तो उन्हे करोबार की अनुमति क्यों नहीं। खासकर तब जब कि इन फुकनों पर एक बार में 500 की बजाय 5 लोग ही एक साथ होते हैं?*
3) निगम-पुलिस वालों का तो काम ही मारना-धमकाना है?  ये कहां, किस किताब में पढ़ लिया?  ये किस कानून मे लिखा है?  ये किस न्यायालय का फैसला है? यानी गलत पर कार्रवाई तो दूर, उसे भी *अपनी मर्जी* (विवेकाधिकर)  से न्याय संगत बताओगे? 

दुख, लानत, शर्म की बात है इतना होने के बाद भी कोई वकील या समाजसेवी या आक्रोशित और पीडित नागरिक एक पोस्ट कार्ड याचिका तक नहीं लगा सकता। ये शहर इतना लाचार, कमजोर या डरपोक कभी नहीं था। आश्चर्य की बात तो ये है कि बात-बात पर सरकार पलट देने की बात कहने वाले  पक्ष-विपक्ष के नेता भी एक “….सोल्जर” के आगे नतमस्तक हैं। जबकि नियति  अधिकतम साल-दो साल ही उसके साथ है। शहर के लोग तो हमेशा तुम्हारे साथ ही हैं।

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