कल टीवी पर एक विश्लेषण देखा जिसमें गेहूं किसान बेचता है 16 – 17 रुपए किलो और उसी गेहूं का आटा पिसने पर बाजार में बिकता है करीब ₹40 किलो। दलाल और बिचोलिया ले रहे भर पल्ले मार्जिन। अमूमन दाल चावल तेल सब में भरपल्ले मार्जिन लिया जा रहा है। याने खाद्धानों पर उपभोक्ता लूटा जा रहा है और पैदा करने वाले इस कमाई से वंचित है। यह मेरी व्यक्तिगत सोच है यदि सरकार या सरकारी समितियां इस व्यापार को अपने हाथ में ले ले तो आधे दामों पर मध्यम वर्गीय को यह खाद्य सामग्री उपलब्ध हो सकेगी और पैदा करने वालों को उनका भरपूर मुनाफा मिल जाएगा। आज के हालात कैसे हो गए हैं मनी मैक्स मनी और जनता संपूर्ण खरीदारी विज्ञापनों के आधार पर करने लगी गुणवत्ता के मापदंड देने वाले पीछे हट रहे हैं। उनकी ओर कोई ध्यान नहीं जा रहा है क्योंकि वह कुछ प्रसारित नहीं कर पा रहे हैं। यह भी हो सकता है कि नवयुवक इस कारोबार में आए और लोकल से वोकल वाली बात को साबित करते हुए यह व्यापार अपने हाथ में ले और उचित दाम पर बेचकर जनता को सुखी करें।
अशोक मेहता, वास्तु एवं पर्यावरणविद् , इंदौर